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सुभाष चंद्र बोस के पास थे खजाने से भरे सूटकेस:प्लेन क्रैश के बाद भी जीवित थे; 127वीं जयंती पर नेताजी की मौत की मिस्ट्री

बात 18 अगस्त 1945 की है। जापान दूसरा विश्व युद्ध हार चुका था। अंग्रेजी हुकूमत नेताजी के पीछे पड़ी थी। इसे देखते हुए उन्होंने रूस से मदद मांगने का मन बनाया। 18 अगस्त 1945 को उन्होंने मंचूरिया की तरफ उड़ान भरी।

5 दिन बाद 23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने जानकारी दी कि एक Ki-21 बॉम्बर प्लेन ताइहोकू एयरपोर्ट के पास क्रैश हो गया। इसमें सवार सुभाष चंद्र बोस बुरी तरह जल गए और अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

सुभाष चंद्र बोस के निधन पर दुनियाभर की 10 से ज्यादा कमेटियों ने जांच की है। आजाद भारत की सरकार ने तीन बार इस घटना की जांच के आदेश दिए। पहले दोनों बार प्लेन क्रैश को हादसे का कारण बताया गया। तीसरी जांच में कहा गया कि 1945 में कोई प्लेन क्रैश की घटना ही नहीं हुई।

सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती पर जानेंगे सुभाष चंद्र बोस की मौत की मिस्ट्री। 8 दशकों में हुई 10 से ज्यादा इन्वेस्टिगेशन्स में क्या-क्या खुलासा हुआ है…

हादसे से कुछ दिन पहलेः जापान सरेंडर करने वाला था, नेताजी नए ठिकाने की तलाश में थे

अगस्त 1945 के दूसरे हफ्ते तक मध्य एशिया में द्वितीय विश्व लगभग खत्म हो चुका था। अमेरिका नागासाकी और हिरोशिमा में परमाणु बम गिरा चुका था। अमेरिकी विमान लगातार हवाई बमबारी कर रहे थे। ब्रिटिश आर्मी मलाया द्वीप पर हमला करने की तैयारी में थी। जापान सरेंडर करने की तैयारी में था।

सुभाष चंद्र बोस के लिए ये खबर अच्छी नहीं थी, क्योंकि जापान उनकी आजाद हिंद फौज की बहुत मदद करता था। भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने का बोस का मिशन पूरा होना बाकी था। उन दिनों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर में थे। उनके चीफ ऑफ स्टाफ जेके भोंसले ने उन्हें सिंगापुर छोड़ने का सुझाव दिया।

इतिहासकार जॉयस चैपमैन की किताब ‘द INA एंड जापान’ के मुताबिक, 16 अगस्त को बोस ने वियतनाम के शहर साइगॉन जाने का फैसला लिया। इसके लिए वो पहले बैंकॉक में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के मुख्यालय गए। यहां आजाद हिंद सरकार के सदस्यों से मिले और जनरल जेके भोंसले को आजाद हिंद फौज का कार्यभार सौंपा।

18 अगस्त 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ उड़ान भरने वाले उनकी टीम के सदस्यों एस.ए. अय्यर, देबनाथ दास, हबीबुर रहमान, गुलजारा सिंह, प्रीतम सिंह और आबिद हसन की तस्वीर।
18 अगस्त 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ उड़ान भरने वाले उनकी टीम के सदस्यों एस.ए. अय्यर, देबनाथ दास, हबीबुर रहमान, गुलजारा सिंह, प्रीतम सिंह और आबिद हसन की तस्वीर।

16-17 अगस्त, 1945 की मध्यरात्रि को बोस ने सभी अधिकारियों को अपने आवास पर बुलाया और उनके साथ विभिन्न योजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने सचिव एस.ए. अय्यर, देबनाथ दास, कर्नल हबीबुर रहमान, कैप्टन गुलजारा सिंह, कर्नल प्रीतम सिंह और मेजर आबिद हसन को अपने साथ सुरक्षित स्थान पर साथ ले जाने के लिए चुना। उनमें से किसी को भी यह नहीं बताया गया कि वे कहां जा रहे हैं। लेकिन उनके साथियों ने अनुमान लगाया कि वे डेरेन मंचुरिया की ओर जा रहे थे।

नेताजी के पास थे INA के फंड्स से भरे 4 सूटकेस

17 अगस्त को सुबह करीब 6 बजे बैंकॉक एयरपोर्ट से नेताजी और उनकी टीम कुछ जापानी अधिकारियों के साथ दो विमानों में साइगॉन के लिए रवाना हुई। नेताजी के साथ INA फंड्स वाले दो छोटे और दो बड़े सूटकेस थे। मधुश्री मुखर्जी अपनी किताब ‘चर्चिल सीक्रेट वॉर’ में लिखती हैं कि नेताजी नहीं चाहते थे कि INA जापान पर ज्यादा निर्भर रहे। वो अक्सर चंदा और दान से फंड जुटाते थे। कई बार उन्होंने चंदा जमा करने के लिए मुहिम भी चलाई।

उनके भाषणों से प्रभावित होकर लोग उन्हें पैसे और सोना-चांदी देते थे। नेताजी से जुड़ी फाइल में जिक्र मिलता है कि इंडिया इंडिपेंडेस लीग (IIL) के जनरल सेक्रेटरी ने NIA फंड्स से भरे बक्से को बैंकॉक में बोस के पास पहुंचा दिया।

बोस के सहायक कुंदन सिंह ने एक जांच रिपोर्ट में बताया कि NIA खजाने को चार हिस्सों में बांटकर बक्सों में भरा गया था। जिनका कुल वजन करीब 75 से 90 किलो के बीच था। इन बक्सों में सोने के जेवर, पैसे और कई तोहफे थे। आगे की यात्रा में बोस इन बक्सों को अपने साथ लेकर चले।

साइगॉन पहुंचने के तुरंत बाद उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया में जापानी सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल हिसाइची तेराची से मुलाकात की। उनसे अनुरोध किया कि वह सोवियत संघ जाने के लिए एक प्लेन की व्यवस्था कर दें। तेराची ने जापान के इंपीरियल जनरल मुख्यालय को एक संदेश भेजकर अनुमति मांगी।

बॉम्बर प्लेन मित्सुबिशी Ki-21, जिसमें सवार होकर बोस मंचूरिया के लिए रवाना हुए थे। इसी प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हुई थी।
बॉम्बर प्लेन मित्सुबिशी Ki-21, जिसमें सवार होकर बोस मंचूरिया के लिए रवाना हुए थे। इसी प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हुई थी।

इतिहासकार जॉइस चैपमैन लेब्रा के अनुसार, जापान के इंपीरियल जनरल मुख्यालय ने कहा कि बोस के लिए जापान को छोड़ना और सोवियत संघ में चले जाना सही नहीं होगा। इसके बावजूद फील्ड मार्शल तेराची ने 17 अगस्त 1945 की दोपहर साइगॉन से टोक्यो जाने वाली एक बॉम्बर प्लेन मित्सुबिशी Ki-21 में बोस के लिए एक सीट की व्यवस्था कर दी। प्लेन में 11 लोग पहले से ही सवार थे।

बोस ने विमान में अकेले जाने से मना कर दिया। हालांकि पायलट से बात करके एक सीट की व्यवस्था और की गई और बोस ने हबीबुर रहमान को अपने साथ जाने के लिए चुना। बोस अपने साथ एक और टीम साथी को लेकर जाना चाहते थे, लेकिन पायलट नोनोगाकी ने उनके सामने विकल्प रखा कि या तो उनके बक्से जाएंगे या तीसरा व्यक्ति। नेता जी ने बक्सों को चुना। INA फंड्स के इन बॉक्सों ने पूरे प्लेन के भार को और अधिक बढ़ा दिया।

हादसे वाले दिनः उड़ान भरते ही हवा में विस्फोट, नेताजी बुरी तरह जल गए

बॉम्बर प्लेन मंचूरिया होकर जाने वाला था, जहां सोवियत सेना तेजी से कब्जे के लिए आ रही थी। बोस का यहीं उतरकर सोवियत संघ की शरण लेकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का प्लान था।

बॉम्बर प्लेन का इंजन उड़ान शुरू होने के समय ही काफी आवाज कर रहा था। 17 अगस्त को शाम 5:20 बजे साइगॉन से उड़ान भरी। रात्रि विश्राम के लिए प्लेन टूरेन वियतनाम में रुका। इस दौरान पायलट ने वजन कम करने के लिए कई मशीन गन, गोला-बारूद और एंटी-एयरक्राफ्ट गन को हटा दिया।

18 अगस्त की सुबह बॉम्बर प्लेन ने फिर उड़ान भरी और दोपहर तक ताइहोकू, फॉर्मोसा (अब ताइपेई ताइवान) पहुंचा। वहां इस प्लेन को 2 घंटे रुकना था। इस दौरान इसमें क्षमता से अधिक गैसोलीन भरा हुआ था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आखिरी तस्वीर साइगॉन एयरपोर्ट पर 17 अगस्त 1945 को ली गई थी। फोटो सोर्स- NETAJI RESEARCH BUREAU
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आखिरी तस्वीर साइगॉन एयरपोर्ट पर 17 अगस्त 1945 को ली गई थी। फोटो सोर्स- NETAJI RESEARCH BUREAU

दोपहर करीब 2 बजे प्लेन ने मंचूरिया के लिए उड़ान भरी। जैसे ही विमान हवा में उड़ा तो लगभग 20-30 मीटर की ऊंचाई पर एक विस्फोट की आवाज आई और उसके बाद तीन-चार जोरदार धमाके हुए। विमान के बाईं ओर का प्रोपेलर गिर गया। कंक्रीट रनवे से आगे क्रैश होने पर विमान दो हिस्सों में टूट गया।

नेताजी गैसोलीन से लथपथ थे और उनके कपड़ों में आग लग गई थी। वो प्लेन के टूटे हुए हिस्से से बाहर आए और उनके बाद हबीबुर भी उनके पीछे बाहर निकले। नेताजी के कपड़ों और उनके शरीर में आग लग गई। बाहर निकलते ही हबीबुर ने बड़ी मुश्किल से नेताजी का स्वेटर और कपड़े उतारे और उन्हें जमीन पर लिटा दिया।

नेताजी का शरीर और चेहरा आग से झुलस गया था। कुछ ही देर बाद नेताजी को अन्य घायलों को नानमोन सैन्य अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया। नेताजी की हालत सबसे गंभीर थी। उनका पूरा शरीर जल गया था। हालांकि वो होश में अब भी थे।

चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. योशिमी के मुताबिक अगली सुबह तक नेताजी के जीवित रहने की संभावना नहीं थी। उनके पूरे शरीर में पट्टियां बांधी हुई थी। उनकी हालत में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा था। रात 9-10 बजे के बीच उन्होंने अंतिम सांस ली।

नानमोन सैन्य अस्पताल, ताइहोकू। जहां प्लेन क्रैश के बाद नेताजी को भर्ती करवाया गया था।
नानमोन सैन्य अस्पताल, ताइहोकू। जहां प्लेन क्रैश के बाद नेताजी को भर्ती करवाया गया था।

20 अगस्त को ताइहोकू में नेताजी का अंतिम संस्कार किया गया। स्थानीय अधिकारियों ने नेताजी की मृत्यु की रिकॉर्डिंग या घोषणा करने की जिम्मेदारी लेने से परहेज किया। नेताजी की मृत्यु की आधिकारिक घोषणा जापानी रेडियो से 23 अगस्त 1945 को की गई। ये खबर तेजी से पूरी दुनिया में फैल गई।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरीज

1. नेताजी रूस पहुंच गए: सेवानिवृत्त मेजर जनरल बख्शी अपनी किताब Bose: The Indian Samurai – Netaji and the INA Military Assessment में जिक्र करते हैं कि नेताजी ताइपेई विमान दुर्घटना में सुरक्षित बच गए थे। फिर नेताजी रूस पहुंचे और उन्होंने आजाद हिंद गवर्नमेंट एम्बेसी की स्थापना की। उन्होंने अपनी किताब में नेताजी को टॉर्चर किए जाने की भी बात लिखी है। ये खबरें भी आती रहीं कि उन्‍हें रूस के सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और वहीं की जेल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली थी।

2. शौलमारी साधू: 1959 में कूच बिहार, पश्चिम बंगाल के शौलमारी में एक साधू श्रीमत शारदानंदजी आए, उन्हें शौलमारी साधू भी कहा जाता था। लोग यह कहने लगे कि ये नेताजी हैं। आश्रम के साधू की 1977 में मौत हुई और मरते दम तक उन्होंने यही कहा- मैं सुभाष नहीं हूं।

3. श्योपुर कलां का साधू: स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में मध्य प्रदेश के श्योपुर कलां के पंडोला गांव में एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, जीवित बचे लोगों में एक साधू ज्योतिर्देव भी था। बाद में जांच के दौरान कुछ लोगों ने बताया कि वो साधू कोई और नहीं नेताजी ही थे।

4. गुमनामी बाबाः कुछ लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टैलिन की मौत के बाद 1950 के दशक के अंत में भारत चले आए। और पूर्वी उत्तर प्रदेश में गुमनामी बाबा के रूप में रहने लगे। इसके बाद तंत्र साधना कर शक्तियां प्राप्त की। अपने सफर के दौरान बाबा ने दलाई लामा की मदद की और एशियाई देशों में कई गुप्त मिशन पूरे किए। 16 दिसंबर, 1985 को उनका निधन होने की बात कही जाती है। सरकार ने 28 जून, 2016 को न्यायमूर्ति विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि गुमनामी बाबा नेताजी के अनुयायी थे, लेकिन नेताजी नहीं थे।

सुभाष चंद्र बोस (बाएं) और गुमनामी बाबा (दाएं) की तस्वीर।
सुभाष चंद्र बोस (बाएं) और गुमनामी बाबा (दाएं) की तस्वीर।

हालांकि इन चारों थ्योरीज के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते हैं। सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच को लेकर ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों ने जांच की है। उनकी जांच में ये बातें सामने आईं…

नेताजी की मौत को लेकर मित्र देशों की जांच में क्या निकला?

  • 30 अगस्त, 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के तुरंत बाद एडमिरल माउंटबेटन ने जनरल मैकआर्थर (जापान में मित्र देशों की शक्तियों के सर्वोच्च कमांडर) को नेताजी की मृत्यु के बारे में जांच के लिए एक आदेश दिया। रिपोर्ट में कहा गया कि बोस 18 अगस्त, 1945 को एक हवाई दुर्घटना में घायल हो गए और उसी शाम उनकी मृत्यु हो गई।
  • सिंतबर 1945 में ब्रिटिश सरकार ने जांच के लिए पुलिस अधिकारियों को बैंकॉक, साइगॉन और ताइहोकू भेजा। इन्होंने साइगॉन एयरपोर्ट के इनचार्ज, ताइहोकू हवाई अड्डे के सैन्य अधिकारियों और ताइपे के नानमोन सैन्य अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर्स से पूछताछ की। इनकी रिपोर्ट में भी बताया गया कि नेताजी ताइहोकू में प्लेन क्रैश में मारे गए।
  • 1946 के मध्य में टोक्यो में तैनात एक सीनियर खुफिया अधिकारी कर्नल जॉन जी फिगेस ने एक बार फिर से जांच शुरू की। 1946 के मई और जुलाई के बीच फिगेस ने टोक्यो में छह जापानी अधिकारियों से पूछताछ की। फिगेस ने लिखा कि यह निश्चित रूप से पुष्टि की गई है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को स्थानीय समय के अनुसार 19:00 बजे से 20:00 बजे के बीच ताइहोकू सैन्य अस्पताल में हुई थी।

भारत सरकार की ओर से की गई जांच में क्या पता चला?

1. शाहनवाज कमेटी 1956: कमेटी में शाहनवाज खान (INA के पूर्व मेजर जनरल और तत्कालीन संसदीय सचिव), नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस और भारतीय सिविल सेवा के एसएन मैत्रा शामिल थे। कमेटी ने 11 चश्मदीदों सहित 67 गवाहों की जांच की, जिन्होंने जलने की चोटों के परिणामस्वरूप नेताजी की मृत्यु की पुष्टि की। रिपोर्ट के मुताबिक…

i) 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू में एक हवाई दुर्घटना हुई थी, जिसमें नेताजी की मृत्यु हो गई।

ii) उनका अंतिम संस्कार वहीं किया गया था।

iii) टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में अस्थियों का कलश नेताजी का ही है।

सुरेश बोस ने अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए। 1960 में अफवाह फैली की सोवियत की जेल में नेताजी बंद है। एक दशक बाद, फरवरी 1966 में सुरेश बोस ने प्रेस को घोषणा की कि उनके भाई सुभाष मार्च में वापस आएंगे। जाहिर है ऐसा नहीं हुआ, लेकिन उनकी असंतुष्ट रिपोर्ट से कुछ लोगों को अंदेशा हुआ कि नेताजी जीवित थे।

रेनकोजी मंदिर, टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस का एक स्मारक। बोस की अस्थियां इसी मंदिर में रखी गई हैं।
रेनकोजी मंदिर, टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस का एक स्मारक। बोस की अस्थियां इसी मंदिर में रखी गई हैं।

2. खोसला कमीशन 1970: 1970 में भारत सरकार ने 1945 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने से संबंधित सभी तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के लिए न्यायमूर्ति खोसला आयोग का गठन किया। हालांकि कुछ नया नहीं निकला। नेताजी के चार सह-यात्रियों और दुर्घटना के पांच चश्मदीदों का इंटरव्यू लिया। उन्होंने शाहनवाज खान, सुरेश बोस और 224 अन्य गवाहों से भी पूछताछ की। उन्होंने भी यही निष्कर्ष निकाला कि नेताजी ताइहोकू में विमान दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उसी रात उनकी मृत्यु हो गई।

हालांकि, उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस दौरान उन्होंने कई अजीबोगरीब थ्योरी भी सुनी। 1946 में मार्सिले एयरपोर्ट पर एक सांसद की उनके साथ आकस्मिक मुलाकात की। अमेरिकी इतिहासकार लियोनार्ड गॉर्डन ने उन्हें बताया कि 24 दिसंबर 1956 को सार्वजनिक रूप से एक अच्छे कपड़े पहने बोस को उच्च गणमान्य व्यक्तियों के साथ मास्को के क्रेमलिन में जाते हुए देखा।

एक व्यक्ति ने दावा किया कि बोस साइबेरिया की एक जेल का 45 सेल नंबर में सड़ रहे थे। फिर भी अन्य लोगों ने फोटोज दिखाई, जिनमें कथित तौर पर बोस को 1952 में मंगोलियाई ट्रेड यूनियन प्रतिनिधिमंडल के साथ पेकिंग का दौरा करते हुए दिखाया गया था, और उसी साल सोशलिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने रंगून के एना झील में बर्मी भिक्षु के वेश में नेताजी से मुलाकात की थी।

3. जस्टिस मुखर्जी कमीशन: नेताजी की मौत के 50 सालों बाद जांच के लिए तीसरा आयोग न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग का गठन 1999 में किया गया। जस्टिस मनोज मुखर्जी को जिम्मेदारी दी गई जांच की। उन्होंने 2005 में निष्कर्ष निकाला कि 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान दुर्घटना का कोई सबूत नहीं है। मुखर्जी ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई और जापानी मंदिर में राख नेताजी की नहीं है। हालांकि उनकी इस रिपोर्ट को भारत सरकार ने नकार दिया।

नेताजी के पास मौजूद खजानों का क्या हुआ?

प्लेन क्रैश के बाद खजाना जापान भेज दिया गया और अगले 6 महीनों तक खजाना वही रहा। 1952 में फंड्स को भारत लाकर राष्ट्रीय संग्रहालय में जमा करा दिया गया। लेकिन इनका वजन केवल 11 किलो ही था। बाद में 1971 में जस्टिस GD खोसला को जांच कमीशन ने बताया कि खजाने के साथ लूट खसोट हुई।

माना जाता है कि INA के खजाने में से लगभग 60 किलो सोना गायब हुआ था। आज के समय में उस खजाने की कीमत 280 करोड़ रुपए थी। हालांकि फंड्स का खजाना कहां गया, ये बात आज भी एक रहस्य है।

निष्कर्ष: भारत सरकार का मानना, 18 अगस्त 1945 को हुआ नेताजी का निधन

23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 100 सीक्रेट फाइलें सार्वजनिक कर दी गईं। फाइलों से ऐसा कोई नया सबूत नहीं मिलता है, जिससे पता चलता हो कि 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू में विमान दुर्घटना में नेताजी जीवित बचे थे। हालांकि इससे पहले भी इंडियन नेशनल आर्मी, खोसला आयोग और न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग से संबंधित कुल 1030 फाइलें गृह मंत्रालय से प्राप्त हुई थीं। ये सभी फाइलें सार्वजनिक रिकॉर्ड नियम, 1997 के तहत जनता के लिए पहले से ही उपलब्ध हैं।

2017 में RTI के तहत पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए गृह मंत्रालय ने बताया गया कि नेताजी की मृत्यु 1945 में विमान हादसे में हुई थी। दो कमीशन और एक कमेटी की रिपोर्टों पर विचार करने के बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है।

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