पानीपत में व्यक्ति ने जिंदगी से मानी हार: 45 दिनों तक किया खुद को शौचालय में बंद, करने लगा मौत का इंतजार
पानीपत में व्यक्ति ने जिंदगी से मानी हार: 45 दिनों तक किया खुद को शौचालय में बंद, करने लगा मौत का इंतजार
पानीपत में व्यक्ति ने जिंदगी से मानी हार।
Panipat Man Locked Himself: पानीपत में एक व्यक्ति अपनी जिंदगी से हताश होकर अपने-आप को शौचालय में कैद कर लिया। बताया जा रहा है कि उसके अंदर यह हताशा मां-बाप, बहन और फिर भाई की मौत के बाद आई। जिसके चलते उसके जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई और वह अपनी मौत इंतजार करने लगा। उसको बाहर से आने वाली आवाज से भी नफरत होने लगी थी।
जन सेवा दल ने किया रेस्क्यू
वहीं, मानसिक रूप से अशक्त उसका दूसरा भाई भी घर में भूखे-प्यासे पड़ा रह रहा था और बाहर से खाना मांग कर खा लेता था। इसके बाद लगभग 45 दिनों के बाद जनसेवा दल को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने घर की छत से चढ़कर दोनों भाइयों को रेस्क्यू कर वहां से निकाला और फिर अपना आशियाना में उन्हें सहारा दिया।
व्यक्ति की पहचान मतलौडा के पंजाबी मोहल्ला निवासी 48 वर्षीय सुरेंद्र उर्फ शैंटी के रूप में हुई है, जो अपने बड़े भाई विजय के साथ रहता था।
भाई के मौत के बाद सदमे में था सुरेंद्र
शौचालय से रेस्क्यू के बाद बाहर आए सुरेंद्र ने बताया कि उनके चार भाई और एक बहन थी। उनकी बड़ी बहन की बचपन में ही मौत हो गई थी और बड़ा भाई विजय मानसिक रूप से अशक्त है। चारों में से किसी की शादी नहीं हुई थी। उनके पिता लख्मीचंद छोले-भटूरे और आइसक्रीम बेचकर घर चलाते थे। 12 साल पहले उनकी मौत हो गई थी।
दूसरे नंबर का भाई अशोक एक लोन एजेंट के चक्कर में कर्जदार हो गया और पांच साल पहले घर से फरार हो गया था। उनकी मां फूला देवी की भी कोरोना के दौरान मौत हो गई थी। तीसरे नंबर का भाई राजकुमार हिमाचल प्रदेश में हैंडलूम का काम करने लगा, जो तीन महीने पहले ही मतलौडा आया था। उसकी भी अज्ञात कारण से कुछ दिन पहले मौत हो गई, जिससे सुरेंद्र को गहरा सदमा लगा। कई दिनों तक घर का दरवाजा नहीं खुलने के बाद बीते रविवार को आसपास के लोगों ने दोनों भाइयों के संबंध में जन सेवा दल के सदस्यों को इसकी जानकारी दी।
डॉक्टर से कराई कई दोनों की जांच
जन सेवा दल के सदस्य ने बताया कि वे सूचना मिलते ही वहां पर पहुंचे थे। उन्होंने स्थानीय लोगों से बातचीत की, लेकिन कोई भी अंदर जाने को तैयार नहीं हुआ। फिर उनके एक सदस्य ने मकान की छत से जाकर भाइयों को समझाकर दरवाजा खोलवाया। उनके कपड़े मल-मूत्र से भरे हुए थे। बदबू से अंदर घुसना भी मुश्किल हो रहा था।