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SC बोला-सेम सेक्स मैरिज पर कानून बनाना संसद का काम:चीफ जस्टिस ने कहा- कोर्ट कानून नहीं बना सकता, उसे लागू करा सकता है

 

सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संवैधानिक पीठ फैसला सुना रही है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता, सिर्फ व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।

सेम सेक्स मैरिज का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 21 याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया था।

5 जजों की बेंच ने की थी सुनवाई
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट्ट और जस्टिस नरसिम्हा फैसला सुना रहे हैं। शुरुआत चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने की।

कोर्ट रूम LIVE: ‘होमोसेक्शुअलिटी सिर्फ अर्बन एरिया तक सीमित नहीं’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘होमोसेक्शुअलिटी या क्वीरनेस सिर्फ अर्बन इलीट क्लास तक सीमित नहीं है। ये सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाले और अच्छी जॉब करने वाले व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों में खेती करने वाली महिलाएं भी क्वीर हो सकती हैं। ऐसा सोचना कि क्वीर लोग सिर्फ अर्बन या इलीट क्लासेस में ही होते हैं, ये बाकियों को मिटाने जैसा है।’

‘शहरों में रहने वाले सभी लोगों को क्वीर नहीं कहा जा सकता है। क्वीरनेस किसी की जाति या क्लास या सोशल-इकोनॉमिक स्टेटस पर निर्भर नहीं करता। ये कहना भी गलत है कि शादी एक स्थायी और कभी न बदलने वाला संस्थान है। विधानपालिका कई एक्ट्स के जरिए विवाह के कानून में कई सुधार ला चुकी है।’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- हर व्यक्ति को अपने पार्टनर को चुनने का अधिकार

  • चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है। उसी तरह ट्रांसजेंडर पुरुष को महिला से शादी करने का अधिकार है। हर व्यक्ति को अपने पार्टनर को चुनने का अधिकार है। वो अपने लिए अच्छे-बुरा समझ सकते हैं। आर्टिकल 15 सेक्स ऑरिएंटेशन के बारे में भी बताता है।
  • हम सभी एक कॉम्प्लेक्स सोसायटी में रहते हैं। हमारी एक-दूसरे के प्रति प्यार और सहयोग ही हमें मनुष्य बनाता है। हमें इसे देखना होगा। इस तरह के रिश्ते अनेक तरह के हो सकते हैं। हमें संविधान के भाग 4 को भी समझना होगा।
  • अगर सरकार खुद को घरेलू स्पेस से हटाती है, तो इससे कमजोर पार्टी असुरक्षित हो जाएगी। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि प्राइवेट स्पेस में हाेने वाली सारी गतिविधियां सरकार की निगरानी से बाहर होंगी।
  • अगर मौजूदा याचिकाओं को लेकर कोर्ट तय करता है कि स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 असंवैधानिक है क्योंकि ये सबको अपने साथ लेकर नहीं चलता है, तो इस सेक्शन को हटाना होगा या इसमें नई बातें जोड़नी होंगी।
  • अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया जाता है, तो ये देश को आजादी से पहले के समय में ले जाएगा। अगर कोर्ट दूसरी अप्रोच अपनाता है और इसमें नई बातें जोड़ता है तो वह विधानपालिका का काम करेगा।
  • एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति अगर हेटेरोसेक्शुअल रिलेशलशिप में है तो ऐसे विवाह को कानून मान्यता देता है। क्योंकि एक ट्रांसजेंडर इंसान हेटरोसेक्शुअल रिलेशनशिप में हो सकता है, इसलिए ट्रांसमैन और ट्रांसवुमन की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर किया जा सकता है।

20 याचिकाएं, 7 दिन सुनवाई के बाद केंद्र ने बनाई थी कमेटी

सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र समस्याओं का हल तलाशने के लिए एक कमेटी बनाने को तैयार है।

मेहता ने कहा था कि यह कमेटी इन कपल की शादी को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे में दाखिल नहीं होगी। समस्याओं को लेकर याचिकाकर्ता यानी सेम सेक्स कपल अपने सुझाव दे सकते हैं। वो हमें बताएं कि क्या कदम उठाए जा सकते हैं। सरकार इस पर सकारात्मक है। हां ये बात जरूर है कि इस मामले में एक नहीं, बल्कि ज्यादा मंत्रालयों के बीच तालमेल की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था, ‘अगर ज्यूडीशियरी इसमें एंट्री करती है तो यह एक कानूनी मुद्दा बन जाएगा। सरकार बताए कि वह इस संबंध में क्या करने का इरादा रखती है और कैसे वह ऐसे लोगों की सुरक्षा और कल्याण के काम कर रही है। समलैंगिकों को समाज से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता है।’

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, ‘स्पेशल मैरिज एक्ट केवल अपोजिट जेंडर वालों के लिए है। अलग आस्थाओं वालों के लिए इसे लाया गया। सरकार बाध्य नहीं है कि हर निजी रिश्ते को मान्यता दे। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि नए मकसद के साथ नई क्लास बना दी जाए। इसकी कभी कल्पना नहीं की गई थी।’

26 अप्रैल, सुनवाई का पांचवां दिन: केंद्र ने कहा था- नई परिभाषा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता
केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा- कोर्ट एक ही कानून के तहत अलग श्रेणी के लोगों के लिए अलग नजरिया नहीं रख सकता। हमें नई परिभाषा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि LGBTQIA+ में ‘प्लस’ के क्या मायने हैं, ये नहीं बताया गया है। उन्होंने पूछा, इस प्लस में लोगों के कम से कम 72 शेड्स और कैटेगरी हैं। अगर ये कोर्ट गैरपरिभाषित श्रेणियों को मान्यता देता है तो फैसले का असर 160 कानूनों पर होगा, हम इसे कैसे सुचारु बनाएंगे?

मेहता ने आगे कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी लिंग के तहत पहचाने जाने से इंकार करते हैं। उन्होंने कहा, कानून उनकी पहचान किस तरह करेगा? पुरुष या महिला के तौर पर? एक कैटेगरी ऐसे ही जो कहती है कि लिंग मूड स्विंग (मन बदलने) पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में उनका लिंग क्या होगा, कोई नहीं जानता है। मेहता ने कहा कि असल सवाल ये है कि इस मामले में ये कौन तय करेगा कि एक वैध शादी क्या और किसके बीच है। मेहता ने दलील दी कि क्या ये मामला पहले संसद या राज्यों की विधानसभाओं में नहीं जाना चाहिए।

25 अप्रैल, सुनवाई का चौथा दिन: CJI बोले- याचिकाकर्ताओं के मुद्दों पर हस्तक्षेप का अधिकार संसद को
सुनवाई के चौथे दिन CJI चंद्रचूड़ ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि इन याचिकाओं में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनमें हस्तक्षेप का अधिकार संसद के पास है। इसलिए सवाल ये है कि इस मामले में कोर्ट कितना आगे तक जा सकती है।’

स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत अधिकार देने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर हम स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत इसे देखेंगे, हमें कई पर्सनल लॉ बोर्ड में भी सुधार करने होंगे।’ जस्टिस कौल और जस्टिस भट्ट ने कहा कि इसलिए बेहतर होगा कि वो इस बात पर गौर करें कि समलैंगिक विवाह का अधिकार दिया जा सकता है या नहीं। इसके बहुत अंदर जाने पर मामला उलझ जाएगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि संविधान में दिए गए अधिकार से वंचित करने के लिए संसद का कारण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब किसी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन हो तो उन्हें संविधान के आर्टिकिल 32 के आधार पर संवैधानिक पीठ में जाने का अधिकार है। उन्होंने कोर्ट से ये भी कहा कि याचिकाकर्ता कोई विशेष बर्ताव की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं बल्कि वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपने संबंधों की व्यावहारिक व्याख्या चाहते हैं।

20 अप्रैल, तीसरे दिन की सुनवाई; CJI ने पूछा- क्या शादी के लिए 2 अलग जेंडर वाले पार्टनर्स होना जरूरी
सुनवाई के तीसरे दिन कोर्ट में बच्चे को गोद लेने पर बहस हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील विश्वनाथन ने कहा कि LGBTQ माता-पिता बच्चों को पालने के लिए उतने ही योग्य हैं जितने अपॉजिट सेक्स के माता-पिता।

बेंच इस दलील से सहमत नहीं था कि अपोजिट सेक्स के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर सकते। बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि लोग अब इस धारणा से दूर हो रहे हैं कि एक लड़का होना ही चाहिए। CJI ने कहा- समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है बल्कि एक स्थिर, भावनात्मक संबंध से कुछ अधिक बढ़कर हैं।

19 अप्रैल, सुनवाई का दूसरा दिन: केंद्र सरकार ने कहा- राज्यों को भी इस बहस में शामिल किया जाए
सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने अपील की कि इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाया जाए। याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एडॉप्शन, सरोगेसी, अंतरराज्यीय उत्तराधिकार, कर छूट, कर कटौती, अनुकंपा सरकारी नियुक्तियां आदि का लाभ उठाने के लिए विवाह की आवश्यकता होती है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वे इसे शहरी एलीट क्लास का विचार नहीं कह सकती। खासतौर पर तब, जब सरकार ने इस दावे के पक्ष में कोई डेटा नहीं दिया है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ये शहरी सोच लग सकती है क्योंकि शहरी इलाकों में अब लोग खुलकर सामने आने लगे हैं।’

18 अप्रैल, सुनवाई का पहला दिन: सेम सेक्स मैरिज की याचिकाएं एलीट क्लास के लोगों का विचार
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के पहले दिन कहा कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेगी कि क्या साल 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट के जरिए सेम सेक्स कपल को अधिकार दिए जा सकते हैं। केंद्र सरकार की ओर से सोलिसिटर जनरल ने कहा था कि ये याचिकाएं एलीट क्लास के लोगों के विचारों को दर्शाती हैं।

केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कानूनी तौर पर देखा जाए तो शादी एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच का रिश्ता होता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष में भेद करने की कोई पुख्ता अवधारणा नहीं है।

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