हिटलर ने आत्महत्या से एक दिन पहले की थी शादी, मरने से पहले अपने साथियों को भी जहर की शीशी दी थी
30 अप्रैल 1945 दोपहर का वक्त। जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर को लगने लगा कि अब वो नहीं जीत पाएगा, उसकी हार तय है, लेकिन वो किसी भी कीमत पर जिंदा दुश्मन के हाथ नहीं आना चाहता था। लिहाजा उसने आत्महत्या करने का फैसला किया। उसने बंकर में मौजूद अपने साथियों के बीच जहर की छोटी-छोटी शीशियां बांटीं। जहर की घातकता हिटलर के अल्शेसियन कुत्ते पर पहले ही आजमा ली गई थी।
साढ़े तीन बजे हिटलर की पत्नी इवा ब्राउन ने जहर निगला। उसी क्षण हिटलर ने भी 7.65 मिलीमीटर की नली वाली अपनी पिस्तौल को दाहिनी कनपटी रख कर अपने सिर में गोली मार ली। उसका निजी सेवक हाइंत्स लिंगे कुछ ही मिनट बाद कमरे में आया। दोनों शवों को कंबलों में लपेटा और नाजी पार्टी के दो SS सैनिकों की मदद से चांसलर कार्यालय के लॉन में ले जाकर जला दिया।
दोनों शवों को जलाने के लिए काफी पेट्रोल उड़ेला गया। शवों के बचे-खुचे हिस्से को बंकर के पास बने एक गढ्ढे में डाल कर दफना दिया गया।
दरअसल सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी हार की कगार पर था। इस वजह से 16 जनवरी 1945 से हिटलर अपने राइश-चांसलर कार्यालय के लॉन में बने तीन मीटर मोटी दीवारों वाले भूमिगत बंकर में रहने लगा था।
25 अप्रैल को ही हिटलर ने अपने निजी अंगरक्षक हींज लिंगे को बुला कर कहा था कि जैसे ही मैं अपने आप को गोली मारूं तो तुम मेरे शव को चांसलरी के बगीचे में ले जा कर उसमें आग लगा देना, ताकि मौत के बाद कोई मुझे देखे नहीं और न ही पहचान नहीं पाए।
आत्महत्या करने से एक दिन पहले अपनी प्रेमिका से शादी की थी
25 अप्रैल से सोवियत सेना ने बर्लिन को घेर लिया था। समझा जाता है कि 27 अप्रैल के दिन हिटलर ने तय कर लिया था कि वह सोवियत सेना के हाथों में पड़ने के बदले आत्महत्या कर लेगा। इसके बाद 28 अप्रैल की मध्यरात्रि को हिटलर ने लंबे समय की अपनी प्रेमिका इवा ब्राउन के साथ अपने बंकर में ही शादी रचाई। उसका प्रचारमंत्री गोएबल्स इस विवाह का साक्षी बना।
प्रचार मंत्रालय के ही एक अधिकारी ने विवाह की विधिवत रजिस्ट्री की। हिटलर ने उसी रात अपनी टाइपिस्ट ट्राउडल युंगे को सामने बिठा कर अपना वसीयतनामा लिखवाया। वसीयत का निजी हिस्सा बहुत छोटा था। उसमें उसने लिखवाया कि वह अब जीना नहीं चाहता। उसके पास जो भी संपत्ति है, उसे वह पार्टी और देश के नाम कर रहा है।
हिटलर को थे कई शारीरिक-मानसिक कष्ट
एडोल्फ हिटलर का पेट काफी नाज़ुक था। उसे पार्किंसन रोग सहित कई शारीरिक व मानसिक कष्ट थे। वह सादा खाना ही खाया करता था। 20 अप्रैल 1945 को हिटलर ने बंकर में ही अपना 56वां जन्मदिन मनाया। कहते हैं कि उस दिन की दावत में खूब शैम्पेन बही थी।
पत्नी के गहने गिरवी रख पहली फिल्म दिखाने वाले दादा साहेब का जन्मदिन
मई 1910। बॉम्बे के अमेरिका-इंडिया पिक्चर पैलेस में फिल्म दिखाई जा रही थी। फिल्म का नाम था ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’। जैसे ही फिल्म खत्म हुई दर्शकों में बैठा एक व्यक्ति जोर-जोर से तालियां बजाने लगा। उस व्यक्ति ने वहीं ये फैसला किया कि वो भी ईसा मसीह की तरह भारतीय पौराणिक किरदारों पर फिल्म बनाएगा। उस व्यक्ति के इस प्रण ने भारतीय सिनेमा की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र को जन्म दिया। बनाने वाले का नाम था – धुंडीराज गोविंद फाल्के, जिन्हें हम आज दादा साहेब फाल्के के नाम से जानते हैं और आज उनका 151वां जन्मदिन है।
कैसे बनी पहली फिल्म
दादा साहेब एक हरफनमौला व्यक्तित्व थे। फिल्में बनाने से पहले उन्होंने पेंटिंग, प्रिंटिंग जैसे कई काम किए। जब ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखी तो उन्होंने सब छोड़ फिल्में बनाने का फैसला लिया। उस जमाने में फिल्में बनाना आसान नहीं था। पैसा, कलाकार, इक्विपमेंट तमाम परेशानियां थीं, लेकिन प्रण लेने वाला व्यक्ति भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। दादा साहेब ने तमाम परेशानियों के बावजूद ये कारनामा कर दिखाया।
1969 से दादा साहेब फाल्के अवार्ड
भारतीय सिनेमा में दादा साहब के ऐतिहासिक योगदान के चलते 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में ‘दादा साहब फाल्के’ अवार्ड की शुरुआत की। इस पुरस्कार को भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। सबसे पहले देविका रानी चौधरी को यह पुरस्कार मिला था।