हरियाणा का सुपर नटवरलाल धनीराम निधन के बाद सुर्खियों में:फर्जी जज बन 2700 आरोपियों को जमानत दे डाली; 77 साल की उम्र में कार चोरी
देशभर में ‘सुपर नटवरलाल’ और चोरों के उस्ताद नाम से मशहूर हरियाणा के रहने वाले धनीराम मित्तल का 85 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया। 18 अप्रैल को उसने अंतिम सांस ली। धनीराम को ‘इंडियन चार्ल्स शोभराज’ के नाम से भी जाना जाता था। धनीराम आदतन एक ऐसा चोर था, जिसने अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी वारदातें करनी नहीं छोड़ी।
77 साल की उम्र में उसे दिल्ली के रानीबाग इलाके से कार चोरी के केस में पकड़ा गया। 4 दिन बाद दिल्ली की रोहणी कोर्ट में धनीराम मित्तल की एक मामले में पेशी भी होनी थी। इसके अलावा, फर्जी जज बनकर 2700 से ज्यादा आरोपियों को जमानत भी दे दी थी।
भिवानी जिले के रहने वाले धनीराम मित्तल का का जन्म 1939 में हुआ था। उसकी गिनती देश के सबसे स्कोलर (विद्वान) और इंटेलिजेंट (बुद्धिमान) अपराधियों के रूप में होती थी। अपने जमाने का ऐसा हाईटेक अपराधी जो न केवल फर्जी जज बनकर काफी समय तक असली जज की कुर्सी पर बैठकर फैसले सुनाता रहा, बल्कि उसने कानून में स्नातक की डिग्री लेने के बाद भी अपराध की दुनिया में कदम रखा।
धनीराम अपने मुकदमों की खुद ही कोर्ट में पैरवी करता था। फिलहाल धनीराम एक पुराने केस में चंडीगढ़ की जेल में 2 माह की कैद काटकर आया था।
1 हजार से ज्यादा कार चोरी में आया नाम
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, धनीराम का नाम दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ और पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में एक हजार से ज्यादा कार चोरी के केस में आया। वह इतना शातिर था कि उसने खास तौर से दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और आसपास के इलाकों में दिनदहाड़े इन चोरियों को अंजाम दिया। उस पर अनगिनत मामले दर्ज थे। जिसकी वजह से वह जेल भी गया। कानून की डिग्री लेने और हैंडराइटिंग एक्सपर्ट के अलावा ग्राफोलॉजिस्ट होने के बावजूद उसने चोरी के जरिए ही जिंदगी गुजारने का रास्ता चुने रखा।
फर्जी दस्तावेज के जरिए स्टेशन मास्टर बना
धनीराम इतना शातिर था कि उसने फर्जी दस्तावेजों के जरिए रेलवे में नौकरी भी हासिल कर ली थी। नौकरी भी कोई छोटी-मोटी नहीं, बल्कि सीधे रेलवे मास्टर की। वर्ष 1968 से 1974 के बीच करीब 6 साल तक उसने देश के कई अहम रेलवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर के पद पर काम किया।
40 दिनों तक जज बनकर बैठा रहा
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 से 1975 के बीच की बात है धनीराम ने एक अखबार में हरियाणा के झज्जर में एडिशनल जज के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश की खबर पढ़ी। इसके बाद उसने कोर्ट परिसर जाकर जानकारी ली और एक चिट्ठी टाइप कर सीलबंद लिफाफे में वहां रख दिया। उसने इस चिट्ठी पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार की फर्जी स्टैंप लगाई, हूबहू साइन किए और विभागीय जांच वाले जज के नाम से इसे पोस्ट कर दिया।
इस लेटर में उस जज को 2 महीने की छुट्टी भेजने का आदेश था। इस फर्जी चिट्ठी और उस जज ने सही समझ लिया और छुट्टी पर चले गए। इसके अगले दिन झज्जर की उसी कोर्ट में हरियाणा हाईकोर्ट के नाम से एक और सीलबंद लिफाफा आया, जिसमें उस जज के 2 महीने छुट्टी पर रहने के दौरान उनका काम देखने के लिए नए जज की नियुक्ति का आदेश था। इसके बाद धनीराम खुद ही जज बनकर कोर्ट पहुंच गया।
सभी कोर्ट स्टाफ ने उन्हें सच में जज मान लिया। वह 40 दिन तक मामलों की सुनवाई करता रहा और हजारों केस का निपटारा कर दिया। धनीराम ने इस दौरान 2700 से ज्यादा आरोपियों को जमानत भी दे दी। बताया ये भी जाता है कि धनीराम मित्तल ने फर्जी जज बनकर अपने खिलाफ केस की खुद ही सुनवाई की और खुद को बरी भी कर दिया। इससे पहले कि अधिकारी समझ पाते कि क्या हो रहा है, मित्तल पहले ही भाग चुका था। इसके बाद जिन अपराधियों को उसने रिहा किया या जमानत दी थी, उन्हें फिर से खोजा गया और जेल में डाल दिया गया।
पुलिस को मौत पर यकीन करना मुश्किल
संभवता धनीराम के निधन पर किसी को शक भी नहीं होना चाहिए, लेकिन कोर्ट कानून और अलग-अलग राज्यों की पुलिस धनीराम की मौत’ की खबर पर आसानी से यकीन नहीं करने वाली। इसके पीछे की वजह, इसमें भी कोई जालसाजी न हो। इसलिए कोर्ट और पुलिस भी मौत के समाचार को कन्फर्म जरूर करेगी। इसके पीछे की एक वजह से भी है कि इसी 26 अप्रैल को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में धनीराम मित्तल की पेशी थी। 2010 के रानीबाग थाने के एक पुराने केस में गैरहाजिर रहने पर उसका नोटिस निकला था।